गाजीपुर। अति प्राचीन रामलीला कमेटी हरिशंकरी की लीला के पांचवें दिन हरिशंकरी स्थित श्रीराम चबूतरा पर बंदे वाणी विनायकौ आदर्श रामलीला मंडल के कलाकारों ने श्री दशरथ कैकेई तथा श्री राम संवाद व विदाई मांगने की लीला का मंचन हुआ। लीला में महाराज दशरथ को मालूम हुआ कि महारानी कैकेई पुराने वस्त्र धारण कोप भवन में जमीन पर लेटी हुई है राजा दशरथ महारानी कैकेयी को मनाने कोप भवन में पहुंचते हैं और उनके नाराज होने का कारण पूछते हैं। महाराज दशरथ के वचन को सुनकर कैकेयी ने याद दिलाया कि महाराज देवा सुर संग्राम में आपने दो वरदान देने को कहा था वह समय आ गया। महाराज दशरथ ने कहा कि प्रिये मुझे अपनी बात याद है तुम जब चाहे वरदान ले सकती हो मैंने जो प्रतिज्ञा किया है वह अटल है। कहा कि रघुकुल रीति सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई। महाराज के वचन को सुनकर कैकेयी ने कहा कि महाराज पहले वरदान में मेरे पुत्र भरत को अयोध्या का राज आपको देना होगा। इसके बाद तापस वेष विसेषि उदासी चौदह बरिश राम बनवासी। दूसरे वरदान में आपके बड़े पुत्र श्रीराम को तपस्वी का भेष धारण करके चौदह वर्ष के लिए वन में जाना होगा। महाराज दशरथ राम वन गमन की बात सुनकर मूर्छित होकर जमीन पर गिर पड़ते। महाराज के मूर्छित होने की बात जब राज दरबार में कुलगुरु वशिष्ठ और श्रीराम को मिलता है तो वे महारानी कैकई के कक्ष में पहुंचकर महाराज के मूर्छित होने की बात को सुनते है। इस बात को सुनकर श्रीराम माता-पिता के वचन को निभाने हेतु वहां से माता कौशल्या के कक्ष में जाकर उनसे आज्ञा लेकर श्रीराम और लक्ष्मण सीता तपस्वी का वेष धारण करके माता कैकेई के कक्ष में पहुंचते हैं। महाराज दशरथ ने अपने प्रिय पुत्र श्रीराम सीता तथा लक्ष्मण को तपस्वी के वेष में देखकर विलाप करने लगते हैं। उनके विलाप को देखकर श्रीराम अपने पिता जी को अनेक प्रकार से समझा बूझाकर उनसे वन जाने की आज्ञा लेकर श्रीराम लक्ष्मण सीता प्रस्थान के दिये। इस भाव विभल दृश्य को देखकर सभी उपस्थित दर्शक भावुक हो गए।इस मौके पर कमेटी के मंत्री ओमप्रकाश तिवारी, उपमंत्री लव कुमार त्रिवेदी, प्रबंधक मनोज कुमार तिवारी, उप प्रबंधक मयंक तिवारी, कोषाध्यक्ष रोहित अग्रवाल, पं0कृष्ण बिहारी त्रिवेदी, राजकुमार शर्मा, राम सिंह यादव, सरदार राजन सिंह उपस्थित रहे।