मित्रता में धन-दौलत आड़े नहीं आतीःनागेंद्र भार्गव

 मित्रता में धन-दौलत आड़े नहीं आतीःनागेंद्र भार्गव
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भांवरकोल (गाजीपुर)। ब्लाक मुख्यालय के समीप सरहमाडीह के किनवार कीर्ति स्तंभ पर चल रहा सात दिवसीय महामृत्युंजय महायज्ञ में श्रीमद् भगवत कथा के सातवें दिन श्रीकृष्ण भक्त एवं बाल सखा सुदामा के चरित्र का वर्णन किया गया। कथा के सुप्रसिद्ध कथावाचक पंडित नागेंद्र भार्गव ने कथा के दौरान श्रीकृष्ण एवं सुदामा की मित्रता के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि सुदामा के आने की खबर पाकर किस प्रकार श्रीकृष्ण दौड़ते हुए दरवाजे तक गए थे। “पानी परात को हाथ छूवो नाही, नैनन के जल से पग धोये। “योगेश्वर श्री कृष्ण अपने बाल सखा सुदामा जी की आवभगत में इतने विभोर हो गए कि द्वारका के नाथ हाथ जोड़कर और अंग लिपटाकर जल भरे नेत्रो से सुदामा जी का हाल चाल पूछने लगे।
उन्होंने बताया कि इस प्रसंग से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मित्रता में धन-दौलत आड़े नहीं आती। उन्होंने कहा कि श्री कृष्ण भक्त वत्सल हैं। सभी के दिलों में विहार करते हैं। जरूरत है तो सिर्फ शुद्ध ह्रदय से उन्हें पहचानने की। कहा कि मनुष्य स्वंय को भगवान बनाने के बजाय प्रभु का दास बनने का प्रयास करें, क्योंकि भक्ति भाव देखकर जब प्रभु में वात्सल्य जागता है तो वे सब कुछ छोड़कर अपने भक्तरूपी संतान के पास दौड़े चले आते हैं। गृहस्थ जीवन में मनुष्य तनाव में जीता है, जबकि संत सद्भाव में जीता है। यदि संत नहीं बन सकते तो संतोशी बन जाओ। संतोश सबसे बड़ा धन है। सुदामा की मित्रता भगवान के साथ नि:स्वार्थ थी। उन्होने कभी उनसे सुख-साधन या आर्थिक लाभ प्राप्त करने की कामना नहीं की, लेकिन सुदामा की पत्नी द्वारा पोटली में भेजे गये चावलों में भगवान श्री कृष्ण से सारी हकीकत कह दी और प्रभु ने बिन मांगे ही सुदामा को सबकुछ प्रदान कर दिया। कथा के दौरान जैसे ही कथा पंडाल में भगवान श्री कृष्ण एवं सुदामा के मिलन का संजीव चित्रण करती हुर्इ झांकी प्रस्तुत की गई, पूरा पंडाल भाव विभोर हो गया और लोग भगवान श्री कृष्ण की जय-जय कार करने लगे। इससे वातावरण पूरी तरह के भक्तिमय हो गया। इस मौके पर मुख्य यजमान इंजीनियर अरविंद राय, संतोष राय, बिजेंदर राय, राममोहन राय, अनिल राय, विमलेश राय, शशांक शेखर राय, विजय शंकर राय, विनीत राय, नागा दुबे, संजय पांडेय सहित सैकड़ों लोग मौजूद रहे।

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