आस्था और विश्वास का केंद्र है मलिक मरदान शाह की मजार
—मजार पर 16 अप्रैल को उर्स पर होगा मेला का आयोजन
शादियाबाद (गाजीपुर)। स्थानीय कस्बा स्थित मलिक मरदान शाह की मजार सभी मजहब के लोगों के लिए आस्था और विश्वास का केंद्र है। यह दरबार मजहब और जाति के बंधन के पूरी तरह से मुक्त है। बिना रोक-टोक हिंदू-मुस्लिम बाबा के मजार पर मत्था टेक मन्नते मांगते हैं। इस दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता, बाबा सभी की मुरादे पूरी करते हैं।
इस दरबार की ऐसी मान्यता है कि सच्चे मन से मांगी गई मुराद अवश्य पूरी होती है। क्षेत्र के लोगों में इतनी आस्था है कि साल की पहली फसल पहले बाबा के दरबार में चढ़ाते हैं। उसके बाद घर के इस्तेमाल में लाते हैं। शादी-विवाह जैसे कोई भी शुभ कार्य करने से पहले यहां मत्था टेंकना नहीं भूलते हैं। क्षेत्र में कई तो ऐसे हैं, जो अपने दिन की शुरूआत यहां हाजरी लगाकर करते हैं। प्रति वर्ष यहां 16 अप्रैल को उर्स पर मेले का आयोजन किया जाता है। पिछले दो वर्षों से करोना के कारण मेला का आयोजन नहीं हुआ था। दरगाह कमेटी के अध्यक्ष आसिम जावेद ने बताया कि इस बार मेला में काफी भीड़ होने की संभावना है। मलिक मरदान शाह के दरगाह की जियारत के लिए बिहार, पंजाब, बंगाल, सूरत, मुम्बई से जायरीन आते हैं और अपनी मुरादे पूरी करके जाते हैं। बताया जाता है कि मलिक मरदान शाह करीब एक हजार वर्ष पूर्व 1029 ई. में शादियाबाद आए थे। इनकी वालिदा (मां) हजरत इमाम हुसैन की बेटियों में से थी। इनके दो पुत्र व दो पुत्रियां थी। बाबा ने अपने छोटे पुत्र मलिक महमूद, जो शिकार करने बेसो नदी के तट पर गए थे। किसी बात पर नाराज होकर उन्हें श्राप दे दिया कि जहां हो, वहीं धरती में समा जाओ। मलिक महमूद हाथी सहित धरती में समा गए थे, जिनकी मजार वर्तमान में मदरसा मलिकुल उलूम परिसर में है। इस कस्बे को उन्होंने बसाया था। उन्होंने अपने सेवक सैदी के नाम पर इस कस्बे का नाम शादियाबाद रखा। इसका प्रमाण किताब (गाजीपुर गजेट पृष्ठ संख्या 253) व आसे अकबरी में मिलता है। अपने वक्त के बादशाह शाहजहां ने उधर से गुजरने के दौरान इनकी चौखट पर हाजिरी लगाकर मुराद पाई थी। उस समय इनका मकबरा नहीं बना था। शाहजहां ने मकबरा बनाने का हुक्म दिया था। निर्माण के लिए काफी धन भी दिया। मकबरे के सहन में ईद व बकरीद की नमाज अदा की जाती है। मकबरे से लगा मुसलमानों का कब्रिस्तान भी है। पश्चिम तरफ एक बड़ा तालाब है। मकबरे की सबसे खास चीज इसके खंभे हैं, जिनकी संख्या कभी भी ज्ञात नहीं हो सकी। बाहर से आने वाले जायरीन अक्सर खंभों की गिनती करते हुए मिल जाएंगे, लेकिन आज तक कभी भी खंभो की गिनती नहीं हो पाई है।