हे जयंत तुम श्री रघुनाथ जी के शरण में जाओं, वहीं तुम्हारी रक्षा कर सकते है

 हे जयंत तुम श्री रघुनाथ जी के शरण में जाओं, वहीं तुम्हारी रक्षा कर सकते है

—अति प्राचीन रामलीला कमेटी हरिशंकरी की रामलीला

गाजीपुर। अति प्राचीन रामलीला कमेटी हरिशंकरी की ओर से लीला का क्रम जारी है। लीला के दसवें दिन गुरुवार की रात नगर के वेदपुरवां मोहल्ला के अन्तर्गत अर्बन बैंक के निकट राजा शम्भूनाथ के बाग में वंदे वाणी विनायको आदर्श रामलीला मंडल द्वारा जयंत नेत्र भंग, माता अनुसुईया संवाद, अत्रिमिलन, राक्षस वध की लीला का शानदार मंचन किया गया।

लीला में दिखाया गया कि जिस समय भरत जी के अयोध्या आने के बाद जहां श्री राम प्रभु अपनी भार्या सीता का फूलों से श्रृगांर कर रहे थे तो वही पर इन्द्र का पुत्र जयंत कौवे का रूप बनाकर देखता है कि श्री राम सीता का श्रृगांर कर रहे है तो उसने सोचा कि अगर श्रीराम भगवान है तो इनके बल को अजमाने की कोशिश किया जाए, वह सीता जी के चरणों में अपने चोच से प्रहार कर भागा जाता है, जिससे सीता जी के चरणों से खून बहने लगता है।

सीता जी के चरणो में खून बहता देख श्री राम घबरा जाते है और एक तृण का अनुसंधान कर जयंत के पीछे छोड़ देते है। जब जयंत (कौवा) ने देखा कि श्री राम द्वारा छोड़ा गया तृण मेरा पीछा कर रहा तो वह घबराकर अपने पिता ब्रह्मा तथा शंकर जी के पास अपनी सहायता के लिए गुहार लगाता है।

ये दोनों देवता जंयत की सारे बातों को सुना तो किसी ने उसके मदद करने का साहस नहीं किया और उसे बैठने तक को नहीं कहा। अतं में वह निराश होकर वापस लौटता है तो रास्ते में भगवत भजन करते हुए देवर्षि नारद से भेंट हो जाती है।

जयंत ने श्री राम से बैर के संबंध में सारी बाते बताया है तो नारद जी कहते है कि हे जयंत तुम श्री रघुनाथ जी के शरण में जाओं, वही तुम्हारी रक्षा कर सकते है। अतः आप उनके शरण में जाओं। इतना सुनते ही जयंत वापस रघुनाथ जी के शरण में जाता है। उसके अवगुणों को ध्यान देते हुए श्री राम उसके ऊपर दया करके एक आंख फोड़कर छोड़ देते है।

इसके बाद प्रभु श्रीराम जंगलो, पहाड़ों को पार करते हुए ऋषि अत्रि मुनि के आश्रम पर पहुंचते है। अत्रिमुनि श्री राम के आने की सूचना पाते ही ऋषि अत्रि अपने आशन से उठकर आते है तथा श्रीराम, लक्ष्मण, सीता को आसन देकर उनका स्तुति करते है नमामि भक्तवत्सलम् कृपालु शील कोमलम् भजामि तेयपदांम्भुजम् अका मिनां स्वधामिदं से स्तुति करते है तथा उन्हे कन्द मूल देकर फल समर्पित करते है।

उधर ऋषि पत्नी अनुसुईया सीता जी को अपने आश्रम के अंदर ले जाती हैं तथा वह आसन देकर सीता जी को बैठाती हैं और नारी धर्म के बारे में सीता जी को समझाया कि हे सीते नारी वह है, जिसका धर्म-कर्म पति के चरणों में समर्पित हो। शस्त्रों कहा गया है कि एकै धर्म एक व्रत नेमा काय वचन मन पति पद प्रेमा और बताया कि जो नारी पति को अपमानित करती है, वह नरकागामी होती है। कहा कि ऐसे पति पर किये अपमाना नारी पायी यमकुर दुख नाना। हे सीते इसके अलावा भी नारी धर्म का जो स्त्री पालन करती है, वह परम् सौभाग्यवान होती है और जब अपने शरीर को छोड़ती है तो उसका सम्मान देवतागण करते हुए सीधे बैकुण्ठ को ले जाते है। इस प्रकार माता अनुसूईया ने सीता जी को नारी धर्म के बारे में बताकर सीता जी को स-सम्मान विदा करती है।

श्री राम ऋषि अत्रि मुनि से आज्ञा लेकर घने जंगलों में जाते है तो बीच में कबंध नामक राक्षस अपने लम्बे हाथ को बढ़ाते हुए सीता जी पर प्रहार करता है, उसी समय लक्ष्मण अपने तीखे तलवार से उसके हाथ को कई खंडों में काट देते है तथा श्री राम अपने बाणों से उसका बध कर डालते हैं। इस लीला को देख दर्शक भावविभोर हो गए। इस अवसर पर कमेटी के मंत्री ओमप्रकाश तिवारी बच्चा उपमंत्री पंडित लवकुमार त्रिवेदी (बड़े महराज), कोषाध्यक्ष रोहित कुमार अग्रवाल, प्रबंधक बीरेश राम वर्मा, उप प्रबंधक मयंक तिवारी, अजय पाठक (एडवोकेट), पंडित कृष्ण बिहारी त्रिवेदी, राम सिंह यादव, राजकुमार शर्मा सहित सैकड़ों की संख्या में दर्शक मौजूद रहे।

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