गाजीपुर। अति प्राचीन रामलीला कमेटी हरिशंकरी की लीला राजा शंभू नाथ के बाग में जयंत नेत्र भंग, माता अनुसूईया संवाद और विराज वध लीला का मंचन हुआ। लीला में प्रभु श्री राम अपने वनवास काल के दौरान जंगल को पार करते चित्रकूट पहुंच कर एक शिला पर विश्राम कर रहे थे। इसी दौरान उन्हें अपनी पत्नी सीता का श्रृंगार करने की इच्छा प्रकट हुई, वे बगीचे में पहुंचते हैं। और फूल तोड़कर सीता का श्रृंगार कर रहे थे कि अचानक देवराज इंद्र का पुत्र जयंत कौवे का रूप बनाकर आया और श्री राम के बल को देखना चाहता था। वह सीता की चरणों में अपने चोंच से चोट पहुंचाता है। उसके चोँच के चोट से सीता जी के चरण से खून की धारा बहने लगता हैं। श्री राम ने सीता के चरण से खून की धारा बहते हुए देखकर तर्कस से तीर निकालकर कौवे के ऊपर प्रहार कर देते हैं। वह तीर कौवे का पीछा करने लगा तब कौवा भगवान श्री राम के छोड़े हुए बाण को देख कर घबराते हुए ब्रह्मा जी के पास जा कर कहता है कि हे प्रभु मेरी रक्षा करें। ब्रह्माजी ने उससे घबराने का कारण पूछा कि आखिर वजह क्या है कि प्रभु श्री राम तुमको मारना चाहते हैं। जयंत ने सारी बात बतायी। उन्होंने कहा कि प्रभु श्री राम से बैर करने वालो की रक्षा कोई नहीं कर सकता। यहां से तुरंत चले जाओ।वह निराश हो भगवान शंकर के पास कैलाश पर्वतपर जाकर शंकर जी से बोला कि हे भोले नाथ मेरे जीवन की रक्षा करें। शंकर जी ने जयंत की बात सुनकर उसको मदद करने से इंकार कर देते हैं। इसके बाद निराश होकर वह निराश होकर चल देता है थोड़ी दूर पहुंचने पर रास्ते में नारद जी से भेंट हो जाती है। वह नारद जी से सारी बातें बता देता है नारद जी उसकी बात को सुनकर कहते कि श्री राम से बैर करके तुमने अच्छा नहीं किया है। श्री राम से बैर करने वाले की रक्षा तीन लोक में कोई नहीं कर सकता है। अतः तुम मेरी बात मानकर श्री राम के शरण में जाओ और क्षमा की याचना करो। वे दीन दुखियों पर दया करते हैं। तुम्हें जरूर क्षमा कर देंगे। नारद जी की बात को सुनकर जयंत भगवान श्री राम के चरणों में गिरकर क्षमा की याचना करता है। भगवान श्री राम ने उसके ऊपर दया करते हुए उसका एक आंख फोड़कर उसे जीवनदान देते हैं। इसके बाद प्रभु श्री राम अत्रि ऋषि के आश्रम पहुंचे जहां अत्रि ऋषिभगवान के भजन में लीन थे। उन्हें जब श्री राम के आने की सूचना मिली तो ऋषि अत्रि मुनि अपने ध्यान से बाहर होकर श्री राम के दर्शन पाकर प्रसन्न हो जाते हैं। उन्हें अपने समक्ष आसन देकर कंदमूल फल भेंट करते हैं। स्तुति करने के बाद ऋषि अत्रि मुनि प्रभु श्री राम से कहते हैं कि हे प्रभु विनती करी मुनि नाईसिरू कह कर जोरि बहोरि। चरण सरोरूह नाथ जनि कबहु तजै मति मोरि। इस प्रकार ऋषि अत्रि ने प्रभु श्री राम से कहा कि हे नाथ हमें कभी छोड़िएगा मत उधर सीता जी को माता अनसूया अपने आश्रम के अंदर ले जाकर पति व्रत धर्म के बारे में शिक्षा देती हुई कहती है कि स्त्रियों का धर्म पति के चरणों में ही होना चाहिए। जो नारी पति का अपमान करती है वे घोर नरक में वास करती है। अनसूया कहती है कि हे सीते जो नारी अपने पति को छोड़कर पर पुरुष के साथ संबंध बनाती हैं और पति का अपमान करती हैं उसे घोर नरक में जाना पड़ता है। इसलिए नारी का कर्तव्य है कि अपने पति को अपने व्यवहार से खुश रखे। उसका तिरस्कार व अपमान नहीं करना चाहिए। आगे चलकर श्री राम प्रभु ने विराज नामक राक्षस का वध कर देते हैं। इस मौके पर मंत्री ओमप्रकाश तिवारी, उप मंत्री लव कुमार त्रिवेदी, मेला प्रबंधक मनोज कुमार तिवारी, मेला उप प्रबंधक मयंक तिवारी, कोषाध्यक्ष रोहित अग्रवाल, कृष्णांत्रिवेदी, भाजपा के वरिष्ठ नेता अखिलेश सिंह, समाजसेवी इंदु सिंह, राजनसिंह आदि मौजूद रहे।