मनाई गई मुंशी प्रेमचंद व डा. उमाशंकर तिवारी की जयंती
गाजीपुर। नगर के अष्टभुजी कालोनी में स्थित द प्रेसिदियम इंटरनेशनल स्कूल के सभागार में साहित्य चेतना समाज और अखिल भारतीय हिंदी महासभा द्वारा मुंशी प्रेमचंद और डा. उमाशंकर तिवारी की जयंती मनाई गई। इस मौके पर माधव कृष्ण ने कहा कि साहित्यकार महाभारत काल के बर्बरीक की भांति होता है। साहित्यकार की वैयक्तिकता मरती है तो वह समग्रता विकसित करता है और तटस्थ रूप से घटनाओं का निरीक्षण कर साहित्य रचता है।
उन्होंने कहा कि मुंशी प्रेमचंद कालजयी इसलिए हैं, क्योंकि उस कालखंड की कोई भी घटना उनकी पैनी दृष्टि से बच नहीं पाई। इस्लामिक कट्टरता पर ‘दिल की रानी’ इसका एक उदाहरण है। डा. उमाशंकर तिवारी का साहित्यिक अवदान यही है कि जब साठ के दशक के बाद गीत लिखना पिछड़ापन माना जाने लगा। उन्होंने यथार्थवादी गीतों की रचना की, जो आज भी लोग गुनगुनाते हैं। मुख्य वक्ता डा. रामनारायण तिवारी ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद का साहित्य पूरे भारत का प्रतिनिधित्व नहीं करता, क्योंकि उन्होंने अधिकांशतः नगरीय विसंगतियों का वर्णन किया है, जबकि उस समय अस्सी प्रतिशत से ऊपर जनसंख्या गांव में रहती थी। उन्हें आलोचकों ने गढ़ा है, पढ़ा नहीं। उन्होंने नवगीतकार डा. उमाशंकर तिवारी को संवेदना पर खड़ा साहित्यकार बताया। उन्होंने दोनों साहित्यकारों का तुलनात्मक अध्ययन करते हुए कहा कि, तिवारी जी लोक को समझ पाए, लेकिन मुंशी प्रेमचंद की लोकधर्मिता संदिग्ध है। विशिष्ट वक्ता डा. श्रीकांत पांडेय ने मुंशी प्रेमचंद के साहित्य को विस्तृत बताते हुए कहा कि वह बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। प्रेमचंद की रचनाओं में तत्कालीन इतिहास बोलता है। उन्होंने अपनी रचनाओं में जन साधारण की भावनाओं, परिस्थितियों और उनकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण किया। उनकी कृतियां भारत के सर्वाधिक विशाल और विस्तृत वर्ग की कृतियां हैं। उन्होंने उमाशंकर तिवारी जी को अत्यधिक संवेदनशील गीतकार बताया, जिसके अपने अनूठे जीवन संघर्ष थे, जो प्राचार्यत्व को बोझ मानते थे और गीतधर्म को मुक्ति। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में विश्वविमोहन शर्मा ने डा. उमाशंकर तिवारी के गीत “वे लोग जो कांधे हल ढोते/खेतों में आंसू बोते हैं/उनका ही हक़ है फ़सलों पर/अब भी मानो तो/बेहतर है।” का वाचन किया और मुंशी प्रेमचंद के साहित्य को अमर बताया। विशिष्ट वक्ता डा. व्यासमुनी राय, डा. राकेश पांडेय आदि ने भी अपना विचार व्यक्त किया। इससे पूर्व संस्था के संस्थापक अमरनाथ तिवारी ने सभी आगन्तुक साहित्यसेवियों का स्वागत करते हुए मुंशी प्रेमचंड और डा. उमाशंकर तिवारी को नमन किया। इस अवसर पर प्रभाकर त्रिपाठी, हरीश पांडेय, सहेंद्र यादव, सज्जन जायसवाल आदि उपस्थित थे। संचालन डा. निरंजन यादव ने किया। अंत में डा. शिखा तिवारी ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।