भीमापार में एक दिन बाद मनायी गयी होली, जानें क्यों

 भीमापार में एक दिन बाद मनायी गयी होली, जानें क्यों

भीमापार(गाजीपुर) पूरे देश में जहां मंगलवार व बुधवार को रंगों का त्योहार होली धूमधाम से मनाया गया ,वहीं भीमापार में होली का त्योहार दूसरे दिन वृहस्पतिवार को धूमधाम से मनाया गया। होली का परंपरागत त्यौहार मान्यताओं के अनुसार एक दिन देर से वृहस्पतिवार को धूमधाम से मनाया गया। वृहस्पतिवार को सुबह से दोपहर तक जमकर रंग खेला गया, फिर नहा धोकर लोगों ने एक दूसरे को रंग व गुलाल लगाकर पर्व की बधाई दी। साथ ही एक दूसरे के घर जाकर गुझिया और अन्य लजीज व्यन्जनो का स्वाद चखा।।लोग अलग अलग रंगों में रंगे हुए नजर आए। इस दौरान बाजार के दोनों तरफ पुलिसकर्मियों की ओर से सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे। राहगीरों को आने-जाने में दिक्कत ना हो, इसके लिए पुलिस लगातार जुटी रही। खुद चौकी प्रभारी अशोक कुमार ओझा भी मौके पर मौजूद रहकर इंतजाम देख रहे थे। वृहस्पतिवार को युवाओं ने भीमापार में लोकगीत गाने के साथ ही कपड़ा फाड़, कीचड़, इंजन से निकले मोबिल आदि एक दूसरे पर फेंककर होली मनाई। बाजार निवासी लालपरीखा पटवा, पिन्टू पटवा विजय कुमार गुप्ता, साहब यादव, सोनू, मोनू, बजरंग, लालजी,सन्तोष यादव, प्रवेश यादव आदि ने एक दूसरे के साथ होली का जश्न मनाया। भीमापार में एक दिन देर से होली मनाने के पीछे कई जनश्रुतियां हैं। सदियों से मान्यता है कि होली के दिन ही भीमापार बाजार में सदियों पहले गांव स्थित मंदिर पर एक सिद्ध संत रहा करते थे।होली के दिन हुडदंग में लोगों ने उन्हें भी रंगों से सराबोर कर दिया। लोगों के इस कृत्य से सन्त क्रोधित हो गए और उन्होंने श्राप दे दिया। वहीं ये भी मान्यता है कि प्राचीन काल में भीमापार बाजार में नाचने गाने वाली नर्तकियां रहती थीं। नर्तकियां अपने लोगों के साथ होली खेलने व फाग गाने के लिए दूसरे गांव में जाकर लोगों का मनोरंजन किया करती थी। इसके चलते होली के दिन गांव सूना रह जाता और इसके एवज में अगले दिन सभी होली मनाते। तभी से ये परंपरा चली आ रही है। वहीं ये भी मान्यता है कि होली के दिन रंग खेलने से अनिष्ट होता था, कई लोगों ने इस प्रथा को बदलना चाहा लेकिन उनके घरों में किसी न किसी के साथ कोई घटना हो गई। जिसके बाद से ही लोग अगले दिन होली मनाते हैं।

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