राष्ट्रवाद और देशभक्ति में घालमेल न करेंः प्रो. चितरंजन मिश्र

 राष्ट्रवाद और देशभक्ति में घालमेल न करेंः प्रो. चितरंजन मिश्र

गाजीपुर। स्वामी सहजानंद पीजी कालेज एवं केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा के संयुक्त तत्त्वावधान में “वर्तमान वैश्विक परिवेश में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की प्रासंगिकता” विषयक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन कार्यक्रम में डा.संगीता सोनी की पुस्तक “समकालीन हिंदी साहित्य विमर्श” का विमोचन हुआ।
महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. (डा.) वीके राय ने कहा कि यह वर्ष महाविद्यालय का स्वर्ण जयंती वर्ष है। हम शैक्षणिक गुणवत्ता के लिए तत्पर हैं ।उन्होंने बताया कि महाविद्यालय फरवरी में एक और अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन डा. कुबेरनाथ राय की स्मृति में आयोजित करने जा रहा है। डीसीएसके मऊ के प्राचार्य प्रो. सर्वेश कुमार पांडेय ने कहा कि राष्ट्र एक जीवंत सत्ता है धर्म-सम्मत जो संविधान है वही राष्ट्र ग्रहण करता है।भारत-भूमि माता है इसके लिए भूखंड की आवश्यकता नहीं। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पृथ्वी के साथ माता का भाव जोड़ता है। इसी क्रम में नॉर्वे से आये सुरेश चंद्र शुक्ला ने विचारों की स्वच्छंदता पर बल दिया। उन्होंने बताया कि किसी भी विचार को बंधन मुक्त होना चाहिए। वैश्विक परिवेश में भूमंडलीकरण की प्रक्रिया लोकल को ग्लोबल और ग्लोबल को लोकल बना रही हैं। यूजीसी एचआरडीसी बीएचयू के निदेशक प्रो. प्रवेश कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि भारत का राष्ट्रवाद विश्व के लिए आदर्श रहा है क्योंकि यह वसुधैव कुटुंबकम पर आधारित है। भारत की विविधता में एकता राष्ट्रवाद का परिचायक है। मुख्य अतिथि प्रो. चितरंजन मिश्र, राजनीतिशास्त्र विभाग, गोरखपुर विश्वविद्यालय ने राजनीति और धर्म को पृथक रुप में देखने का प्रयास किया है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद और देशभक्ति में घालमेल करना उचित नहीं होगा। प्रो. मिश्र ने यह भी कहा कि राष्ट्रप्रेम में जहां समर्पण की भावना है वहीं राष्ट्रवाद में अहंकार की भावना नहीं है। हमें अपनी परम्परा-संस्कृति को अपनाना चाहिए किंतु श्रेष्ठता बोध व अहंकार जनित अतिशय गर्व से बचना चाहिए। उन्होंने दीनदयाल उपाध्याय को उद्धृत करते हुए बताया कि संस्कृति मानव चित्त की खेती है। ईश्वरशरण डिग्री कॉलेज प्रयागराज के प्राचार्य प्रो. आनन्द शंकर सिंह ने इंगित किया कि परम्परा संस्कृति को हस्तानांतरित करती है ।भारतीय संस्कृति अनुदार नहीं है। प्रो. सिंह ने कहा कि चिंतनधारा अन्वेषणात्मक है. अर्थ चिंतन की भारतीय परम्परा के संदर्भ में ‘लाभ से शुभ हो’ एक मूल्य है। प्रो. महेंद्र कुमार, अध्यक्ष, राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ ने भारतीय परंम्परा की विशेषताओं को व्यक्त करते हुए कहा कि भारतीय परम्परा भोग की नहीं, अपितु त्याग की रही है।
राजकीय महिला पीजी कालेज की प्राचार्य डॉ.सविता भारद्वाज ने सूचना, प्रौद्योगिकी एवं तकनीकी के आधार पर संस्कृति की प्रासंगिकता और उपादेयता को स्पष्ट करते हुए कहा कि सोशल मीडिया इंटरनेट आदि ने व्यक्ति को आत्म-सीमित कर दिया है और हम सांस्कृतिक क्षरण की ओर जा रहे हैं। इससे बचना होगा और अपनी सांस्कृतिक पहचान को पुनः प्राप्त करना होगा। धन्यवाद ज्ञापन महाविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के प्रो.अजय राय ने किया। संचालन लेफ्टिनेंट (डॉ.) शशिकला जायसवाल एवं डा. प्रमोद श्रीवास्तव अनंग ने किया ।

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